अब दो समय की रोटी भी होगी सचमुच महंगी : गेहूं का सरकारी भंडारण 16 साल में सबसे निचले स्तर पर
मुम्बई / महाराष्ट्र ( ललित दवे ) – कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) महाराष्ट्र प्रदेश के महामंत्री एवं अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया इस वर्ष विश्व भर के अधिकतर देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम खफा सा चल रहा है कहीं प्रचंड गर्मी तो कहीं पर मूसलाधार बारिश तो कहीं पर बाढ़ के चलते किसानो की पैदावार पर काफी असर हो रहा है और उत्पादन कम हो रहा है जिसका असर अब खाने की चीजों के दामों पर दिखने लगा है।
एक तरफ सरकार द्वारा दावा किया जा रहा की खुदरा मुद्रास्फीति दर नीचे की तरफ जा रहा है लेकिन इसके विपरीत खाने की वस्तुओं की कीमतें महंगी होती जा रही है। देश के कई हिस्सों में पारा 45 डिग्री तक पहुंच गया है और लोग परेशान हैं। हाल ही में गर्मी के कारण दूध की कीमत में हुई बढ़ोतरी के बाद अब सब्जियों, दालों, फलों आदि के दाम बढ़ गए हैं, महंगाई बढ़ने से मध्यम वर्ग की हालत खस्ता हो गई है। जिसे देखते हुए नई सरकार को इससे निपटने के लिए कदम उठाना जरूरी है। महंगाई के कारण मई में महंगाई दर चिंताजनक स्तर तक पहुंच जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
खाने-पीने की चीजों और खासकर फलों और सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी से जून 2024 में खुदरा महंगाई दर एक बार फिर बढ़कर 5.14 फीसदी हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो यह दिसंबर 2023 के बाद से इसका पांच महीने का उच्चतम स्तर होगा। उस वक्त खुदरा महंगाई दर 5.69 फीसदी थी। अप्रैल में यह 11 महीने के निचले स्तर 4.83 फीसदी पर आ गई थी।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, बढ़ते तापमान ने देश के कई हिस्सों में सब्जियों और फलों की फसलों को प्रभावित किया है। इससे जून में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 9.1 फीसदी हो सकती है, जो अप्रैल में 8.7 फीसदी थी। इसका असर कुल महंगाई पर देखने को मिल सकता है। सीएमआईई के मुताबिक फलों और सब्जियों की महंगाई दर करीब दो फीसदी बढ़ी है। इससे फलों की महंगाई अप्रैल में 3.5 फीसदी से बढ़कर मई में 5.5 फीसदी तक पहुंच गई है। पिछले महीने धीरे-धीरे फलों की कीमत में 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।आलू, पत्तागोभी और फूलगोभी की कीमतों में भी मासिक आधार पर तेज बढ़ोतरी देखी गई।
देश का हर परिवार दो समय की रोटी, गुड़ या सब्जी खा सके, इसकी व्यवस्था सभी संबंधित एजेंसियों को करनी चाहिए। लेकिन आए दिन किसी न किसी वस्तु के दाम में बढ़ोतरी की खबरें आ रही हैं। दूध, दही, सब्जियों से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक, कीमतों में वृद्धि का असर न केवल गरीबों और मध्यम वर्ग बल्कि अच्छे-अच्छे परिवारों पर भी पड़ रहा है। फिर एक और वस्तु की कीमत बढ़ने की संभावना है। सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों में गेहूं का आटा महंगा हो सकता है। पिछले एक साल में गेहूं का आटा आठ फीसदी महंगा हो गया है. पिछले 15 दिनों में कीमतें सात फीसदी बढ़ी हैं, जो अगले 15 दिनों में सात फीसदी और बढ़ सकती हैं। सरकारी भंडारों में हर समय तीन महीने (138 लाख टन) गेहूं का स्टॉक रहना चाहिए। लेकिन इस बार खरीद सीजन शुरू होने से पहले सिर्फ 75 लाख टन का स्टॉक था। इससे पहले 2007-08 में यह 58 लाख टन था यानी गेहूं का भंडार अब 16 साल में सबसे निचले स्तर पर है।
यह स्टॉक 2023 में 84 लाख टन, 2022 में 180 लाख टन और 2021 में 280 लाख टन था. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से, सरकार के गेहूं के भंडार में गिरावट आ रही है। सरकार ने अब तक कुल 264 लाख टन गेहूं की खरीद की है, लेकिन सरकार का लक्ष्य 372 लाख टन है। जिसके चलते खरीद का समय को भी 22 जून तक बढ़ा दिया गया है, लेकिन खरीद केंद्रों पर पर्याप्त गेहूं नहीं आ रहा है। ऐसी स्थिति में ‘अनाज योजना’ और बीपीएल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गेहूं का तत्काल आयात करने का मन सरकार बना रही है। भारत ने आखिरी बार 2017-18 में ऑस्ट्रेलिया और यूक्रेन से 15 लाख टन गेहूं का आयात किया था। 2021-22 में कुल 80 लाख टन, 2022-23 में 55 लाख टन और 2023-24 में पांच लाख टन गेहूं का निर्यात किया गया था।
दूसरी ओर, फसल चक्र के दौरान कोहरे और हवा के कारण गेहूं की उत्पादकता में पांच क्विंटल प्रति एकड़ की कमी क्यों हुई सामान्य परिस्थितियों में पैदावार 20 क्विंटल तक होती है। मध्य प्रदेश में पिछली बार से 22.67 लाख टन कम खरीदी हुई है।
सरकार ने आटे की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए व्यापारियों पर स्टॉक सीमा लगा दी थी। वे 5000 क्विंटल से ज्यादा भंडारण नहीं कर सकते हैं। जिसके कारण व्यापारियों के पास गेहूं नहीं है और सप्लाई चैन बाधित हो रही।
कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने साल में कई बार खुले बाजार में गेहूं बेचा। जिससे सरकारी स्टॉक कम हो गया।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, देश में 2023-24 में 112 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन होने का अनुमान है, जो पिछले साल लगभग 110 मिलियन मीट्रिक टन था। लेकिन बढ़ती आबादी और कुछ लोग जो श्री अन्न यानी बाजरा, ज्वार, रागी जैसे मोटे अनाज खाते थे वह भी अब गेहूं खाने लगे हैं जिससे खपत में बढ़ोतरी हो रही है।
